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दूधेश्वर नाथ मंदिर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश | Real History Story of Shivling Dudheshwar Mandir, Ghaziabad

Posted by Suraj Saini in: Ghaziabad Ghaziabad History
देश की राजधानी से सटे गाज़ियाबाद का दूधेश्वरनाथ महादेव मठ मंदिर अपनी ऐतिहासिकता के साथ-साथ सामाजिक गतिविधियों और सेवा प्रकल्पों के लिए भी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि रावण के पिता विश्वश्रवा ने यहां कठोर तप किया था। पुराणों में हरनंदी (हिरण्यदा) नदी के किनारे हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग का वर्णन मिलता है, जहां पुलस्त्य के पुत्र एवं रावण के पिता विश्वश्रवा ने घोर तपस्या की थी। रावण ने भी यहां पूजा-अर्चना की थी। कालांतर में हरनंदी नदी का नाम हिंडन हो गया और हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग ही दूधेश्वर महादेव मठ मंदिर में जमीन से साढ़े तीन फीट नीचे स्थापित स्वयंभू दिव्य शिवलिंग है।

इस मंदिर का मुख्य द्वार एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है। दरवाजे के मध्य में गणेश जी विद्यमान है जिन्हें इसी पत्थर को तराश कर बनाया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि इस मंदिर को छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनवाया था। मंदिर का जीर्णोद्धार श्री धर्मपाल गर्ग जी वर्तमान में श्री धर्मपाल गर्ग जी दुधेश्वर विकास समिति के अध्यक्ष है

दूधेश्वर महादेव के लिए एक कथा प्रचलित है।

ब्रह्मा जी के 10 पुत्र थे उनमे से एक का नाम था पुलत्स्य और पुलत्स्य के पुत्र वैश्रवण की दो पत्निया थी | पहेली थी इलाविद जिसका पुत्र था कुबेर और दूसरी पत्नी थी कैकेसी जिसके संतान थी रावण, विभीषण, कुम्बकर्ण, शूर्पणखा |

रावण और कुबेर के पिता वैश्रवण बिसरख गांव में रहते थे जो गाजियाबाद के पास हैं | उनका पुत्र कुबेर भगंवान शिव के साथ रहते थे और उनसे मिल नहीं पाता था | तो कुबेर को बुलाने के लिए उन्होंने शिव की तपस्या की, शिव ने खुश होकर उनको दर्शन दिए तो वैश्रवण ने शिव से कहा की आप कुबेर के साथ मेरे साथ यह रहो| तो शिव ने कहाँ तुम एक कैलाश यह बनादो तो मै यह रहे सकता हु और फिर भगवान शिव ने वैश्रवण को एक शिवलिंग पुरस्कार में दिया |

पुलस्त्य को  विश्वेश्वरवा भी कहा जाता हैं |

जहा शिव भगवन ने वैश्रवण को दर्शन दिए वो दूधेश्वर नाथ मंदिर है और जो शिवलिंग दिया था वो वही विराजमान हैं | वैश्रवण कैलाश बनके लिए उस जगह का नाम कैला रख दिया पर वो बना नही पाए | फिर बहोत साल बाद वो शिवलिंग मिटटी और जंगल मै दब गया |

गांव कैला की गायें जब यहां चरने के लिए आती थीं। तब टीले के ऊपर पहुंचने पर स्वतः ही दूध गिरने लगता था। इस घटना से अचंभित गांव वालों ने जब उस टीले की खुदाई की तो उन्हें वहां यह शिवलिंग मिला। गायों के दूध से अभिसिंचित होने के कारण यह दूधेश्वर या दुग्धेश्वर महादेव कहलाये।

550 वर्षों की ज्ञात श्री महंत परम्परा के अनुसार 1511 से 2043 तक 15 महंथ रहे। इन सभी की समाधियां मंदिर प्रांगण में हैं। वर्तमान में सोलहवें श्रीमहंत नारायण गिरि श्री दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर के पीठाधीश हैं।
इस मंदिर में एक धूना जलता है, जिसके बारे में मान्यता है कि यह कलयुग में महादेव के प्रकट होने के समय से ही जलती है।

यहां एक कुआं भी है, जिसके पानी का स्वाद कभी मीठा तो कभी गाय के दूध जैसा हो जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि यहां की गौशाला में "लम्बो गाय" है जो उन गायों की ही वंशज है जिन गायों का दूध अपने आप शिव लिंग पर गिरा करता था।

यहां वेद विद्यापीठ भी है, जिसकी स्थापना श्री शंकराचार्य जयंती वर्ष 2002 में की गई थी। इसके अंतर्गत मंदिर प्रांगण में बीस कक्षाओं वाली श्री दूधेश्वर विद्यापीठ का शुभारंभ हुआ। इस विद्यापीठ में पूरे भारत भर से आये पचास से अधिक छात्र गुरुकुल परंपरा के अनुसार विद्या अध्ययन करते हैं। यहां एक समृद्ध पुस्तकालय भी है, जिसमें लगभग आठ सौ से भी अधिक ग्रन्थ मौजूद हैं।

फागुन के महीने में यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटी रहती है। दूर-दूर से जल लेकर आने वाले भक्त दूधेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हैं और गंगाजल चढ़ाते हैं।

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